मेरे बारे में

कोई बड़ा आदमी नहीं। जिसका परीचय आवश्यक हो। पर चलोकभी-कभार लिख लेता हों। आज अपने परीचय पर भी लिखता चलूं।

सोचता हूं मैं भी अक्सर,
मैं कौन हूं,
कल बालक  था आज युवा,
कल होगा तन जर जर,
फिर मृत्यु शयिया पर सोना है,
कहां से हूं आया?
जाना कहां है?
मैं खुद नहीं जानता।
प्रथम वंदन उन  मात-पिता को,
मेरे लिये हैं,  सर्वस्व जो,
कहा मां ने बड़े प्यार से,
न डरना कभी अंधकार से।
मैं गिरता रहा, मां  ने उठाया,
नहीं माननी हार, पिता ने   समझाया।
मैं उन के लिये क्या कर सकुंगा,
मैं खुद भी नहीं जानता...
5 वर्ष तक घर में था,
फिर रुख किया शहर का,
शिक्षा ली रोजगार पाया,
जहां कल था, न रह पाया,
कभी यहां कभी वहां,
नहीं पता कल जाना कहां,
कितना समय कहांहै  रहना,
मैं खुद नहीं जानता।
हंस्ता हूं गाता हूं,
हर पल खुशी में बिताता हूं,
बहुत है वो जो मिला है मुझे,
जो खोया है न उसका गिला मुझे,
मिला है मुझे सबसे प्यार,
स्मर्ण करता हूं इश्वर को बार बार।
कब तक हूं मैं दुनिया में,
मैं खुद भी नहीं जानता।
कृपा करना मां हाटेशवरी,
रक्षा करना सदा मेरी।
मेरा ये नशवर जीवन,
महकाए सदा औरों का उपवन,
हृदय में रहे सदा देश प्रेम,
करूं सदा मैं  काम नेक,
फूल हूं या शूल हूं मैं,
मैं खुद भी नहीं जानता।
 मेरा देश वो है
जो श्री कृष्ण का है,
मेरा   धर्म भी 
जो स्वामी विवेकानन्द का है
मेरे आदर्श
श्री राम हैं
मुझे क्या करना है
बताती है गीता,
शायद है यही
बस मेरा परीचय...

नाम: कुलदीप ठाकुर। [मां,  पिताजी,   परिवार व दोस्त  पिंकू कहकर बुलाते हैं]
जन्म स्थान: शिमला के रोहड़ू में एक छोटा सा गांव बानसा [मचोदी]
जन्म तिथि: 4 सितंबर 1984।
शिक्षा: हिंदी में सनातक।
शौक: कविता लिखना, साहित्य पढ़ना, पुराना संगीत सुनना, भारतीय संस्कृति से संबंधित सामग्री एकत्र करना। प्राचीन ग्रंथ पढ़ना।
नये नये दोस्त बनाना आदी।
कविता लेखन: शौक के लिये लिखना,
प्रकाशन:गिरी राज व मात्रिवंदना में कुछ कविताएं प्रकाशित हुई।
ब्लौग लेखन: 2010 से।
अन्य: 100 प्रतिशत दृष्टिहीन।
अंत में मां हाटेशवरी से एक निवेदन के रूप में कुछ शब्द।
न  आ सका
तेरे मंदिर में,
मां हाटेशवरी
कृपा करो।
मेरा जीवन
मेरा पथ
मेरा हर क्षण
तुम्हारा है मां।
जो हुआ
हो रहा है जो
जो होगा भी
सब अच्छा है।
जानती हो मां
मेरी उलझन
क्या करूं मैं
क्या न करूं।
जो मांगा  मैंने
वो दिया तुमने
मेरी   इच्छाएं
 जानती हो तुम।
बस हैं केवल
यही दो अर्मान
होंगे ये पूरे
है तुम पर विश्वास।

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस जाबांज का दिल से शत-शत नमन,,
    बस इतना कहना है की १००% दृष्टि है आपके पास...,कभी अपने आपको कम नही आकियेगा , दुनिया में बहुत लोग हैं जिनके पास दृष्टि है और उन्हें नहीं दिखाई देता...आप तो श्रृष्टि करता की अनमोल संतान हो.. श्रृष्टि बाहें फैलाए आपका स्वागत कर रही है ...फैलते आओ हर ओर...अशेष शुभकामनाये !

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  2. आँख होना ही बहुत नहीं होता है
    अपनी इच्छा की वस्तुऎं ही तो
    हर कोई देख ही लेता है
    मन की आँखों से जो
    कोई कुछ कह लेता है
    उससे बडी़ आँख वाला
    कोई नहीं कहीं होता है !
    बहुत अच्छे विचार हैं आपके लिखते रहिये !

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  3. आपका परिचय प्रेरणा का स्त्रोत है। ईश्वर की महान कृपा है आप पर। आपके साथ विश्वसनीय लोगों का समूह है।

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ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
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